भारतीय स्टॉक मार्केट ने पिछले हफ्ते एक तीव्र गिरावट देखी, जिसमें Nifty 25,000 के ऐतिहासिक स्तर से नीचे बीते। इस ठहराव को केवल एक या दो कारणों से नहीं समझा जा सकता; वास्तविक परिदृश्य कई स्तरों पर चल रही दबावों का मिश्रण है। नीचे हम उन तीन प्रमुख कारणों की बारीकी से जाँच करेंगे, जिनकी वजह से निवेशकों के विश्वास पर भारी ठेस लगी है।
विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) का लगातार दबाव
तीन लगातार ट्रेडिंग दिवसों में FII ने भारत के इक्विटी बाजार से भारी निकासी की। 24 सितंबर को 2,400 करोड़ रुपये, 23 सितंबर को 3,500 करोड़ रुपये और 21 सितंबर को 2,900 करोड़ रुपये की निकासी दर्ज की गई। ये आंकड़े न केवल लाखों छोटे निवेशकों को चिंता में डालते हैं, बल्कि बाजार के समग्र तरलता को भी घटाते हैं। फंड मैनेजर्स ने बताया कि यू.एस. बोंड यील्ड्स में वृद्धि और डॉलर की मजबूती ने उन्हें अधिक रिटर्न वाले विकसित बाजारों की ओर मोड़ दिया। इतना नहीं, कई विदेशी फंड्स ने जोखिम-आधारित पोर्टफ़ोलियो री‑बैलेंसिंग की नीति अपनाई, जिससे उभरते बाजारों में पूँजी बहिर्वाह तेज़ी से बढ़ा।
इस प्रवाह के कारण Nifty के कई प्रमुख इंडेक्स, विशेष रूप से वित्तीय सेवाएँ और सूचना तकनीक, ने अपने पिछले उच्च स्तर को खो दिया। बाजार में निरन्तर ‘बिक्री’ संकेत मिलने से अल्पकालिक ट्रेडर्स ने भी अपनी पोजीशन तेजी से निकाली, जिससे कीमतों में तीव्र गति से गिरावट आई।
अमेरिकी आर्थिक वायुमंडल की अस्थिरता
अमेरिकी अर्थव्यवस्था में मंदी के शुरुआती संकेत और लगातार ब्याज दर बढ़ोतरी ने वैश्विक निवेशकों की भावना को लोचदार बना दिया। फ़ेडरल रिज़र्व ने मौजूदा अवधि में कई बार ब्याज दरें बढ़ाने का संकेत दिया, जिससे डॉलर को सपोर्ट मिला और कई उभरते देशों के लिए पूँजी आउटफ़्लो बढ़ा। भारतीय निवेशकों को भी अब USD‑Rupee के अंतरों का अधिक ध्यान रखना पड़ा, क्योंकि डॉलर की मजबूती में लगातार वृद्धि ने विदेशी निवेशकों को भारत से दूर किया।
साथ ही, यू.एस. में जारी व्यापार तनाव और कई प्रमुख कंपनियों की आय में गिरावट ने वैश्विक जोखिम भावना को और खराब किया। इस माहौल में, विकासशील बाजारों को भरोसेमंद मूल्य संरक्षण के रूप में देखा गया, परंतु अंततः तेज़ी से बढ़ते ब्याज दर और अनिश्चितता ने उन्हें भी प्रभावित किया।
घरेलू आर्थिक चुनौतियां और नीति अनिश्चितताएँ
भारत में महंगाई की निरंतर बढ़ोतरी के साथ-साथ नीतियों में अस्पष्टता ने निवेशकों को चकित किया। वस्तु कीमतों में वृद्धि, विशेषकर खाद्य और ऊर्जा सेक्टर में, उपभोग को दबाव में लाया, जिससे कंपनियों के राजस्व में धीमी गति देखी गई। इसके अतिरिक्त, केंद्रीय बैंक ने ब्याज दर को स्थिर रखने की कोशिश के बावजूद मौद्रिक नीति में कई बार बदलाव की संभावना जताई, जिससे बाजार में अनिश्चितता बढ़ी।
वित्तीय सेवाओं के सेक्टर में, तेज़ क्रेडिट विस्तार और डिजिटल लेंडिंग की बूम चल रही थी, परन्तु FII की निरन्तर निकासी और वैश्विक जोख़िम घटने के कारण इस बेहतरीन वृद्धि को धक्का मिला। मार्च 2025 में Nifty Financial Services Index में 9% की अस्थायी उछाल देखा गया था, परन्तु वह स्थायी नहीं रह पाई। उसी तरह, सूचना प्रौद्योगिकी (IT) सेक्टर, जो पहले निर्यात‑उन्मुख आय के कारण सुरक्षित माना जाता था, आज भी विदेशी मुद्रा प्रवाह में कमी और अमेरिकी ग्राहक कंपनियों के आय में गिरावट के कारण दबाव में है।

नियामक और सरकारी प्रतिक्रियाएँ
बाजार की अस्थिरता को देख, रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (RBI) ने रूढ़िवादी उपाय अपनाए। उन्होंने विदेशी मुद्रा बाजार में डोज़िट्री इवेंट को नियंत्रित किया और बैंकों को तुरंत इक्विटी‑संबंधित त्रुटियों को कम करने के निर्देश दिए। साथ ही, सिक्योरिटीज़ एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ़ इंडिया (SEBI) ने अत्यधिक बेचने वाले ट्रेडर्स पर प्रतिबंध लगाया, जिससे अत्यधिक अस्थिरता को कम करने की उम्मीद थी।
सरकार भी तेल, गैस और कुछ मौलिक वस्तुओं पर मूल्य नियंत्रण लगाने, साथ ही छोटे व मध्यम उद्योगों के लिए वित्तीय सहायता पैकेज प्रस्तुत करने की योजना बना रही है। लक्ष्य है निवेशकों को भरोसा दिलाना और बाजार को फिर से स्थिर एवं आकर्षक बनाना।
इन सब पहलुओं को मिलाकर देखे तो निहित है कि भारतीय शेयर बाजार आज एक जटिल तंत्र के रूप में कार्य कर रहा है, जिसमें विदेशी और घरेलू दोनों कारक एक साथ मिलकर कीमतों को प्रभावित कर रहे हैं। अगले हफ्ते में क्या होने वाला है, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि नीति निर्माताओं की प्रतिक्रियाएँ कितनी तेज़ और प्रभावी हैं, और वैश्विक आर्थिक माहौल में किस दिशा में बदलाव आता है।