दंड – भारतीय क़ानून में सज़ा, बैन और सामाजिक नियंत्रण की समझ

जब हम दंड, ऐसी कानूनी या सामाजिक प्रक्रिया है जो नियम‑भंग या दुष्कर्म के जवाब में लागू होती है. Also known as सज़ा, it acts as a deterrent, a corrective tool, and sometimes a symbolic statement to keep व्यवस्था intact.

दंड के दो सबसे आम रूप सज़ा, जेल, जुर्माना या काम के प्रतिबंध जैसे दंडात्मक उपायों से जुड़ी है और बैन, एक निश्चित अवधि या स्थायी रूप से किसी व्यक्ति या संस्था को गतिविधि से बाहर निकालना. दोनों मिलकर नियम‑पालन को सुदृढ़ करते हैं और समाज में अनुशासन स्थापित करते हैं। उदाहरण के तौर पर, हाल ही में ICC ने तेज़ गेंदबाज Haris Rauf को ‘बैन’ किया, जिससे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में ‘दंड’ का एक स्पष्ट केस मिला। इसी तरह, भारतीय न्यायालयों में आर्थिक धोखाधड़ी के मामलों में वित्तीय दंड के तौर पर भारी जुर्माने लगाए जाते हैं, जो ‘सज़ा’ के रूप में कार्य करते हैं।

इन संबंधों को समझते हुए, नीचे आपको विभिन्न क्षेत्रों में ‘दंड’ से जुड़ी शीर्ष खबरें मिलेंगी – चाहे वह कोर्ट‑केस हो, सरकारी नीति हो, या खेल‑विश्व में लागू प्रतिबंध। इस संग्रह में आप पढ़ेंगे कैसे ‘दंड’ आर्थिक, सामाजिक और खेल‑जगत में बदलाव लाता है, और किन परिस्थितियों में ‘सज़ा’ या ‘बैन’ को लागू किया जाता है। तैयार हो जाइए, क्योंकि आगे आपके लिए एकत्रित खबरों की सूची होगी जो आपके दैनंदिन जानकारी को अपडेट रखेगी।

कर ऑडिट की अंतिम तिथि नहीं बढ़ी: देर से दाखिल करने पर भारी जुर्माना और ब्याज 24 सितंबर 2025

कर ऑडिट की अंतिम तिथि नहीं बढ़ी: देर से दाखिल करने पर भारी जुर्माना और ब्याज

आयकर विभाग ने कर ऑडिट के लिए 30 सितंबर 2025 की अंतिम तिथि बरकरार रखी है, जबकि व्यक्तिगत करदाताओं को एक दिन की रियायत दी गई। देर से दाखिल करने पर सेक्शन 234A के तहत 1% माह के हिसाब से ब्याज और सेक्शन 234F के अंतर्गत ₹5,000 तक का जुर्माना लगता है। ऑडिट रिपोर्ट न देने पर वि. VI‑A के कई छूट भी रद्द हो जाती हैं। कंपनियों के लिए फॉर्म 3CEB का समय अलग है, पर ऑडिट की डेडलाइन वही रहती है।