ऑडिट केसों की समय सीमा पर कड़ी पकड़
आयकर विभाग ने कर ऑडिट की फाइलिंग के लिए 30 सितंबर 2025 को अंतिम तिथि तय कर रखी है। इस तिथि के बाद ऑडिट रिपोर्ट नहीं जमा करने पर सीधे‑सिर्धा दंड और ब्याज लगते हैं। साथ ही, संबंधित आयकर रिटर्न (ITR) का फाइलिंग डेडलाइन 31 अक्टूबर 2025 है, जिसे न मानने पर भी वही सज़ा लागू होगी। यह कोई नया नियम नहीं, बल्कि पिछले वर्षों की वही कड़ी शर्तें हैं, बस अब तक की रियायतें व्यक्तिगत करदाताओं तक सीमित रखी गईं।
उदाहरण के तौर पर, यदि कोई व्यापारिक इकाई 30 सितंबर तक अपना ऑडिट रिपोर्ट नहीं जमा करती, तो न केवल ब्याज लगेगा, बल्कि भाग VI‑A के तहत कई कटौतियाँ भी काटी जाएँगी। यह उन कंपनियों के लिए बड़ी आर्थिक धक्का साबित हो सकता है जिनका टैक्स बेस पहले से ही सीमित है।

देर से दाखिल करने के परिणाम और बचाव के उपाय
सेक्शन 234A के अनुसार, कर बकाया पर हर महीने 1 % ब्याज वसूल किया जाता है, चाहे वह एक महीने का भाग भी हो। साथ ही, सेक्शन 234F के तहत व्यक्तिगत आय 5 लाख रुके से ऊपर हो तो ₹5,000, और उससे कम आय वाले करदाताओं को ₹1,000 का लेट फाइलिंग फ़ी लौटा दी जाती है। यह जुर्माना ऑडिट केस में और भी भारी हो जाता है क्योंकि नॉन‑कम्प्लायंस से सीधे‑सिर्धा कटौतियों पर रोक लगती है।
ऑडिट रिपोर्ट जमा करने के लिए UDIN (Unique Document Identification Number) का होना अनिवार्य है। रिपोर्ट को अस्सेसी द्वारा स्वीकृत कराना भी जरूरी है; नहीं तो फाइलिंग मान्य नहीं होगी। इसलिए टैक्स प्रोफेशनल्स को सलाह दी जाती है कि वे अपने क्लाइंट्स को समय से पहले रिपोर्ट स्वीकार कराने का प्रबंध करें, ताकि नयी डेडलाइन के कारण कोई चूक न हो।
व्यक्तिगत करदाता 31 December 2025 तक लेट रिटर्न जमा कर सकते हैं, पर इसमें जुर्माना और ब्याज दोनो लागू होंगे। जबकि कंपनियों के पास अंतर्राष्ट्रीय लेन‑देन या विशेष घरेलू लेन‑देन के लिए फॉर्म 3CEB की डेडलाइन 30 November 2025 है, पर ऑडिट रिपोर्ट की तिथि वही बनी रहती है, जिससे कंपनी के अकाउंटेंट्स पर अतिरिक्त दबाव बनता है।
यदि कोई अत्यंत विशेष परिस्थिति में डेडलाइन के बाद भी रिटर्न दाखिल करना चाहता है, तो वह सेक्शन 119 के तहत अस्सेसिंग अधिकारी से अनुमति माँग सकता है। लेकिन यह प्रक्रिया लंबी और अनिश्चित है, इसलिए समय पर फाइल करना ही सबसे सुरक्षित रास्ता है।