प्रोफेसर जी. एन. साईबाबा के संघर्ष और मानवाधिकारों के प्रति समर्पण को याद करते छात्र और शिक्षक

प्रोफेसर जी. एन. साईबाबा के संघर्ष और मानवाधिकारों के प्रति समर्पण को याद करते छात्र और शिक्षक
  • Nikhil Sonar
  • 14 अक्तू॰ 2024
  • 12 टिप्पणि

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में एक विशेष सभा के दौरान छात्रों, शिक्षकों और कार्यकर्ताओं ने प्रोफेसर जी. एन. साईबाबा को याद किया, जिन्होंने अपने जीवन में कठिन संघर्षों का सामना किया। साईबाबा न केवल एक शिक्षक और विद्वान थे, बल्कि एक सशक्त मानवाधिकार कार्यकर्ता थे जिन्होंने दलितों, आदिवासियों और विकलांग अधिकारों के लिए आवाज उठाई। उन्हें 2014 में गिरफ्तार किया गया था और 2024 में अंततः बरी होने से पहले उन्होंने लगभग 3,500 दिन जेल में बिताए।

प्रोफेसर जी. एन. साईबाबा का संघर्ष

प्रोफेसर साईबाबा का जीवन संघर्षों से भरा रहा। उनका स्वास्थ्य लंबे समय तक कैद रहने के कारण बिगड़ता चला गया। जेल में उनकी हालत गंभीर हो गई थी, और अंततः उनकी मृत्यु का कारण उनकी कई स्वास्थ्य समस्याएं बनीं। उनके समर्थन में छात्रों और कार्यकर्ताओं की आवाजें गूंजती रहीं, जो कह रहीं थीं कि प्रोफेसर साहब को राजनीतिक रूप से निशाना बनाया गया था।

वह एक मजबूत व्यक्तित्व के धनी थे जिनकी लेखनी और विचारधारा ने कई लोगों को प्रेरित किया। उन्होंने सामाजिक न्याय के लिए अथक प्रयास किए और कई बार अपनी आवाज को बुलंद किया। उनके लेखन में प्राप्त कविताएं और पत्र वैश्विक समाज को झकझोरती थीं और उनके मानवधिकारों के लिए समर्पण का प्रमाण थीं।

जी. एन. साईबाबा की जेल यात्रा और अदालती लड़ाई

2014 में, उन्हें माओवादी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था और 2017 में महाराष्ट्र की एक सत्र अदालत ने उन्हें दोषी करार दिया। हालांकि, अक्टूबर 2022 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने उनके मामले में प्रक्रियात्मक त्रुटियों को देखते हुए उनकी रिहाई का आदेश दिया। लेकिन, उच्चतम न्यायालय ने इसे खारिज कर दिया और एक ताजा सुनवाई का आदेश दिया। उनका अंतिम रूप से बरी होना 5 मार्च 2024 को नागपुर सेंट्रल जेल से हुआ।

इस दौरान, छात्रों और कार्यकर्ताओं ने उनकी रिहाई के लिए संघर्ष किया और ‘राजनीतिक कैदियों को रिहा करो’ और ‘इंकलाब जिंदाबाद’ के नारों के साथ उनका समर्थन किया।

समारोह में दिए गए विचार

समारोह में दिए गए विचार

सभा में वरिष्ठ शिक्षक मनोरंजन मोहंती और अपूर्वानंद ने साईबाबा के साहस और मानवाधिकारों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को सराहा। मोहंती ने जेल में साईबाबा की बिगड़ती सेहत पर टिप्पणी करते हुए कहा कि राज्य ने उनके शरीर का अपमान किया जिसके कारण उनके गुर्दे और यकृत विफल हो गए। अपूर्वानंद ने उन्हें एक ईमानदार विद्वान के रूप में वर्णित किया जो छात्रों और शिक्षकों दोनों के बीच लोकप्रिय थे, और साथ ही उनके परिवार की धैर्य और साहस के लिए उनकी प्रशंसा की।

जी. एन. साईबाबा का वृहद योगदान

साईबाबा की मानवाधिकारों के प्रति समर्पण की तुलना उनके परिवार की संघर्षशीलता से की जा सकती है। उनकी पत्नी वसंता कुमारी और बेटी मंजरी ने धैर्य और साहस का परिचय दिया, जिनका योगदान भी बहुत महत्वपूर्ण रहा है।

यह सभा छात्रों को साईबाबा के अद्भुत संघर्ष और न्याय की लड़ाई को जारी रखने की प्रेरणा देती है, खासकर जिस प्रकार से उन्होंने UAPA को एक दमनकारी यंत्र मानकर उसके विरोध की पहल की। उनका मानना था कि साईबाबा की विरासत फासीवाद के खिलाफ लड़ाई में एक प्रेरणा बनी रहनी चाहिए।

12 टिप्पणि

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    anushka agrahari

    अक्तूबर 14, 2024 AT 08:07

    प्रोफेसर साईबाबा के संघर्ष को याद करना हमारे लिए एक बड़ी प्रेरणा है; उनका जीवन विचारों की गहराई और नैतिक साहस से भरपूर था। ऐसी शख्सियतें सामाजिक न्याय के प्रज्वलन में बीकन बनती हैं। हमें उनके आदर्शों को अपने दैनिक कार्यों में उतारना चाहिए, ताकि इतिहास की गवाही केवल शब्दों में न रह जाए। उनके द्वारा स्थापित सिद्धांत आज भी हमारे अंदर झांकते हैं, और हमें आगे बढ़ने का मार्ग दिखाते हैं।

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    aparna apu

    अक्तूबर 15, 2024 AT 20:07

    साईबाबा साहब की कहानी सुनते‑सुनते मेरा दिल तेज़ी से धड़कता है, जैसे हर एक शब्द में इतिहास का ज़ोरख़ दाँव लग जाता है 😊। उन्होंने अपने जीवन को अदृश्य जंजीरों से मुक्त करने के लिए लड़ाई लड़ी, और जेल की चार दीवारों के भीतर भी वे अपने विचारों की रोशनी नहीं बुझने दी। उनके संघर्ष में मानवाधिकार, सामाजिक समानता और लोकतांत्रिक मूल्यों की मूरत छिपी है, जो आज के युवा को जागरूक करता है। उनके द्वारा लिखी गई कविताएँ और पत्र केवल कागज़ के टुकड़े नहीं, बल्कि आशा की किरणें हैं, जिनमें कई पीढ़ियों की आवाज़ गूँजती है। जेल की स्याही में लिखी हर पंक्ति, वह एक अनोखा साहसिक कार्य था, जिसमें उन्होंने अपनी क़ैदियों को भी मुक्त किया। यही कारण है कि छात्रों ने नारों के साथ उनका समर्थन किया, क्योंकि साईबाबा साहब का नाम सिर्फ़ एक प्रोफ़ेसर नहीं, बल्कि एक विचारधारा का प्रतीक है। उन्होंने UAPA को दमनकारी उपकरण कहा, और यह भाषण आज भी कई लोगों के दिल में प्रतिध्वनित होती है। उनके स्वास्थ्य की गिरावट पर भी उन्होंने किसी भी तरह से हताशा नहीं दिखाई, बल्कि इसे एक और लड़ाई की तरह लिया। जेल की कड़ी सजा ने उन्हें टूटाया नहीं, बल्कि उनके विचारों को और भी मज़बूत किया। उनका परिवार, विशेषकर उनकी पत्नी और बेटी, भी इस संघर्ष में साथ थीं, जो दर्शाता है कि यह केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामूहिक संघर्ष था। उनकी रिहाई के बाद भी, वह अपने वैचारिक मंच पर नहीं उतर पाए, क्योंकि उनका मिशन अभी भी जारी है। वह अभिभूत नहीं हुए, बल्कि उन्होंने अपने अनुभवों को छात्रों को सिखाने के लिए प्रयोग किया। यह सब देखकर मैं सोचता हूँ, क्या हम वास्तव में उनके सपनों को आगे ले जा रहे हैं या बस नाम ले रहे हैं? उनका प्रवचन ‘राजनीतिक कैदियों को रिहा करो’ आज भी एक मधुर गान बनकर गूँज रहा है, और हमें इसकी गहराई को समझना चाहिए। अंत में, मैं कहना चाहूँगा कि साईबाबा साहब का जीवन हमें सिखाता है कि सत्य और न्याय हमेशा जीतते हैं, चाहे कितनी भी कठिन राह हों 😊।

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    arun kumar

    अक्तूबर 17, 2024 AT 08:07

    साईबाबा सर का संघर्ष देख कर दिल से एक ही आवाज़ आती है – आगे बढ़ो! उनका साहस और जज्बा हमें भी अपने लक्ष्यों से जुड़ने की प्रेरणा देता है। हमें उनका उदाहरण लेकर अपने छोटे‑छोटे प्रयासों में भी प्रतिबद्ध रहना चाहिए।

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    Mohammed Azharuddin Sayed

    अक्तूबर 18, 2024 AT 20:07

    उनके केस में कई न्यायिक उलझनें थीं, परंतु अन्ततः सच्चाई ने जीत हासिल की। इस प्रक्रिया ने भारतीय न्याय प्रणाली में सुधार की आवश्यकता को उजागर किया। भविष्य में ऐसे मुद्दों के समाधान के लिए अधिक पारदर्शिता चाहिए।

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    Avadh Kakkad

    अक्तूबर 20, 2024 AT 08:07

    साईबाबा जी के कानूनी संघर्ष को समझाते हुए यह कहा जा सकता है कि प्रक्रिया में procedural errors ने उनका कई सालों का जीवन प्रभावित किया। यह एक महत्वपूर्ण केस स्टडी है, जो भविष्य के वकीलों को पढ़नी चाहिए।

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    naman sharma

    अक्तूबर 21, 2024 AT 20:07

    सच कहा गया है कि यह एक साधारण राजनीतिक केस नहीं, बल्कि एक गुप्त शक्ति की साजिश है जो उन्नत निगरानी तकनीक से जुड़ी है। हाई कोर्ट के फैसले में छिपे हुए पहलुओं पर पुनः विचार किया जाना चाहिए।

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    Sweta Agarwal

    अक्तूबर 23, 2024 AT 08:07

    वाकई, हमें तो बस सारा दिन इन ‘वीर’ लोगों की जयघोष सुनते‑सुनते थक गया है। 🤔 ऐसा लगता है जैसे हर बार वही नाटक दोहराया जा रहा है।

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    KRISHNAMURTHY R

    अक्तूबर 24, 2024 AT 20:07

    साईबाबा सर की बातों में बहुत गहरी न्यूरल नेटवर्क वाली सोच मिलती है, जो आज के policy‑makers के लिए एक benchmark हो सकती है। इस प्रकार की डिस्कशन में हम सभी को अपने‑अपने domain‑specific insights लानी चाहिए। :)

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    priyanka k

    अक्तूबर 26, 2024 AT 08:07

    ओह, क्या शानदार ‘सभी को सच्चाई की ओर ले जाना’ का मंचन है! 🙄 लगता है हमें फिर से वही पुराने slogans सुनने को मिलेंगे।

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    Shivansh Chawla

    अक्तूबर 27, 2024 AT 20:07

    देश के संरक्षक होने के नाते यह देखना चाहिए कि ऐसे केस नयी घातक नीति नहीं बन जाएँ। साईबाबा की लड़ाई हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ भी जुड़ी हुई है, इसे समझना जरूरी है।

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    Sandeep Chavan

    अक्तूबर 29, 2024 AT 08:07

    अवनति रोकें! 🚀

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    Karan Kamal

    अक्तूबर 30, 2024 AT 20:07

    साईबाबा के न्यायसंगत प्रयासों में कई सवाल भी उठते हैं-क्या यह मॉडल अन्य सामाजिक आंदोलनों में लागू हो सकता है? इसके बारे में गहराई से चर्चा करने की जरूरत है।

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