कनाडा में सरकार बनेगी, लेकिन बहुमत के बिना
कनाडा में हुए ताज़ा आम चुनाव में लिबरल पार्टी ने सबसे ज़्यादा सीटें पाकर अपनी बढ़त तो कायम रखी, लेकिन इस बार बहुमत से पीछे रह गई। मार्क कार्नी की लीडरशिप में पार्टी ने 165 सीटों का आंकड़ा छुआ, जबकि बहुमत के लिए 170 की ज़रूरत थी। दूसरी तरफ कंज़र्वेटिव पार्टी ने 147 सीटों के साथ काफी अच्छा प्रदर्शन किया—2011 के बाद उनकी सबसे बेहतरीन वापसी रही। लेकिन विपक्ष की सबसे बड़ी धुरी भी सरकार बनाने से चूक गई।
चुनाव के नतीजे खास इसलिए भी रहे क्योंकि कई बड़े नामों की किस्मत पलटी। कंज़र्वेटिव नेता पियरे पोइलीएवर को अपनी खुद की ग्रामीण ओटावा सीट में हार का सामना करना पड़ा, जहां लिबरल्स के ब्रूस फैंजॉय ने जीत दर्ज की। वहीं, क्यूबेक की ब्लॉक पार्टी 23 सीटों के साथ अपने इलाके में सधी हुई मौजूदगी दिखाने में सफल रही।
जगमीत सिंह की एनडीपी का ऐतिहासिक पतन और नया समीकरण
इस चुनाव में सबसे ज़्यादा चर्चा जगमीत सिंह की एनडीपी की रही, जो केवल 7 सीटों तक सिमट गई—यह उनका पिछले कई दशकों का सबसे खराब प्रदर्शन है। हालत ये रही कि खुद सिंह अपनी बर्नाबी सेंट्रल सीट पर जीत से जूझते दिखे। इसी वजह से एनडीपी के भीतर नेतृत्व को लेकर सवाल उठने लगे हैं। लेकिन बहुमत के नज़दीक आकर रुकने वाली लिबरल पार्टी के लिए, एनडीपी का समर्थन बेहद अहम हो गया है। संसद में अब एनडीपी की भूमिका ‘किंगमेकर’ जैसी है—जिसका वह पिछले चुनावों तक सपना देखती रही थी।
मार्क कार्नी ने पार्टी को नए सिरे से खड़ा करने की कोशिश की थी, क्योंकि जस्टिन ट्रूडो के दौर में कई विवादों और अंदरूनी झगड़ों के बाद लिबरल पार्टी की छवि प्रभावित हो चुकी थी। कार्नी ने मार्च 2023 में पार्टी की कमान संभाली और चुनावी लड़ाई को अमेरिका के साथ तनाव, घरेलू अर्थव्यवस्था की चुनौतियों और सामाजिक मुद्दों जैसे बड़े सवालों से जोड़ा।
चुनाव के नतीजों पर सिर्फ देशभर में नहीं, विदेशों में भी चर्चा है। कनाडा के पूर्व प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर और भारत के नेता राहुल गांधी तक ने कार्नी को जीत पर बधाई दी।
बार-बार जीतने के बावजूद इस बार लिबरल सरकार को बिना बहुमत के कानून बनवाने के लिए विपक्षी समर्थन की जरूरत पड़ेगी, खासकर अहम आर्थिक और विदेश नीति के फैसलों पर। मौजूदा हालात में, जब अमेरिका के साथ व्यापार के मुद्दों और डोनाल्ड ट्रंप की ओर से ‘एनेक्सेशन’ जैसी धमकियों का माहौल हो, किसी भी पार्टी के लिए पुराने ढर्रे पर चलना आसान नहीं होगा। लिबरल्स की अगली चुनौती होगी—देश को राजनीतिक स्थिरता दिलाना और जनता का भरोसा बनाए रखना।
Vidit Gupta
अप्रैल 30, 2025 AT 19:37वाह, यह सुनकर लगता है कि कनाडा का राजनीतिक परिदृश्य फिर से रोमांचक हो गया है, लिबरल पार्टी ने सबसे अधिक सीटें तो पकड़ लीं, लेकिन बहुमत से चूके, इस वजह से गठबंधन की चर्चा शुरु होगी, विपक्षी दलों को अब ज्यादा अहम भूमिका निभानी पड़ेगी, उम्मीद है कि यह स्थिति स्थिरता लाएगी।
Gurkirat Gill
मई 18, 2025 AT 04:17जैसे ही हम देखेंगे कि लिबरल्स को किस तरह के समर्थन की जरूरत पड़ेगी, यह स्पष्ट हो जाता है कि एनडीपी की सहमति ही किंगमेकर की भूमिका निभाएगी, यदि उन्होंने सहयोग दिया, तो सरकार आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ा सकेगी, दूसरी ओर, कंज़र्वेटिव्स को भी अपना प्रभाव दिखाने का मौका मिल सकता है, यह मिश्रित संसद नीति निर्माण को संतुलित कर सकती है, साथ ही अंतरराष्ट्रीय संबंधों में भी नया समीकरण बन सकता है, इस सब को देखते हुए भारत के वाणिज्य हितों को भी ध्यान में रखना जरूरी है।
Sandeep Chavan
जून 4, 2025 AT 12:57बहुमत नहीं, फिर भी सरकार बन सकती है।
anushka agrahari
जून 21, 2025 AT 21:37इतिहास ने बार‑बार दिखाया है कि अल्प बहुमत वाले संवैधानिक व्यवस्थाएँ अधिक संवाद‑प्रधान होती हैं, इस प्रकार नीति‑निर्माण में विविध विचारों का समावेश सुनिश्चित होता है, इसलिए यह अवसर नागरिकों के लिए एक सक्रिय भूमिका लेने का है, जहाँ प्रत्येक आवाज़ को महत्व दिया जाएगा, और यह लोकतंत्र की मजबूती को और अधिक सुदृढ़ करेगा।
aparna apu
जुलाई 9, 2025 AT 06:17ओह वाह! यह बिल्कुल एक ड्रमबीट की तरह है जहाँ हर बीट में नया ट्विस्ट आता है 😊। पहले तो यह अजीब लगता है कि बहुमत नहीं है, लेकिन देखिए, यह स्थिति हमें एक ‘ड्रामा’ की सच्ची कहानी सुनाती है 🎭। प्रत्येक पार्टी अपनी कहानी लिख रही है, लिबरल्स को अब एक ‘कीपर्स’ की तरह सहयोग की तलाश है। एनडीपी का समर्थन ही अब ‘शो‑स्टॉपर’ बन सकता है। अगर वे अपनी सीटों को सही दिशा में मोड़ें तो पूरी कहानी में नया मोड़ आएगा। कंज़र्वेटिव्स को भी अब ‘सेकेंड लीड’ की भूमिका अदा करनी होगी। यह सब मिलकर एक ‘ट्रायल’ की तरह है जहाँ जनता को ‘ऑडियंस’ नहीं, बल्कि ‘वॉल्यूम‑कॉंट्रोल’ की ज़िम्मेदारी मिली है। इस नाट्य में अर्थव्यवस्था, विदेश नीति और सामाजिक मुद्दे सभी ‘साउंड‑ट्रैक’ बनेंगे। हमारे पास अब एक ‘संचालक’ है जो सभी धुनों को संतुलित करेगा। तो चलिए हम सभी इस ‘प्रोडक्शन’ में अपना ‘सापोर्ट’ दें। क्यूँकि अंत में यह ‘सिंफ़नी’ तभी सफल होगी जब हर ‘इन्स्ट्रूमेंट’ अपना भाग निभाए। अफ़सोस की बात नहीं कि यह तनावभरा है, बल्कि यह उत्साह का नया अध्याय है। जैसे ही एक नई धारा बहती है, हमें भी नई दिशा में बहना चाहिए। आखिरकार, हर ‘ट्रांसफ़ॉर्मेशन’ में एक ‘रिसॉल्यूशन’ होता है। यही हमारे लोकतंत्र का असली ‘हैप्पी एण्ड’ है 🌟।
arun kumar
जुलाई 26, 2025 AT 14:57कनाडा के इस नतीजे से हमें भी सीख मिल सकती है, विशेषकर विदेश व्यापार की रणनीतियों में, यदि लिबरल्स को स्थिर गठबंधन मिल गया तो हमारी कंपनियों के लिए द्विपक्षीय समझौते आसान हो सकते हैं, साथ ही पर्यावरणीय मानकों पर सहयोग बढ़ेगा, इसलिए भारतीय स्टार्ट‑अप्स को इस बदलाव पर नजर रखनी चाहिए, और अपने निवेशकों को आगे की योजना बनाते समय इस जानकारी को ध्यान में रखना चाहिए।
Karan Kamal
अगस्त 12, 2025 AT 23:37बिल्कुल, हमें केवल देखना नहीं चाहिए बल्कि सक्रिय रूप से संवाद स्थापित करना चाहिए, ताकि नीति‑निर्माताओं को हमारी आवश्यकताएँ स्पष्ट रूप से बताई जा सकें, इस प्रकार हम अपने हितों की रक्षा कर सकते हैं।