कनाडाई चुनाव में मार्क कार्नी की लिबरल पार्टी की जीत, बहुमत दूर; जगमीत सिंह की एनडीपी बनी फैसला करने वाली पार्टी

- 30 अप्रैल 2025
- 0 टिप्पणि
कनाडा में सरकार बनेगी, लेकिन बहुमत के बिना
कनाडा में हुए ताज़ा आम चुनाव में लिबरल पार्टी ने सबसे ज़्यादा सीटें पाकर अपनी बढ़त तो कायम रखी, लेकिन इस बार बहुमत से पीछे रह गई। मार्क कार्नी की लीडरशिप में पार्टी ने 165 सीटों का आंकड़ा छुआ, जबकि बहुमत के लिए 170 की ज़रूरत थी। दूसरी तरफ कंज़र्वेटिव पार्टी ने 147 सीटों के साथ काफी अच्छा प्रदर्शन किया—2011 के बाद उनकी सबसे बेहतरीन वापसी रही। लेकिन विपक्ष की सबसे बड़ी धुरी भी सरकार बनाने से चूक गई।
चुनाव के नतीजे खास इसलिए भी रहे क्योंकि कई बड़े नामों की किस्मत पलटी। कंज़र्वेटिव नेता पियरे पोइलीएवर को अपनी खुद की ग्रामीण ओटावा सीट में हार का सामना करना पड़ा, जहां लिबरल्स के ब्रूस फैंजॉय ने जीत दर्ज की। वहीं, क्यूबेक की ब्लॉक पार्टी 23 सीटों के साथ अपने इलाके में सधी हुई मौजूदगी दिखाने में सफल रही।
जगमीत सिंह की एनडीपी का ऐतिहासिक पतन और नया समीकरण
इस चुनाव में सबसे ज़्यादा चर्चा जगमीत सिंह की एनडीपी की रही, जो केवल 7 सीटों तक सिमट गई—यह उनका पिछले कई दशकों का सबसे खराब प्रदर्शन है। हालत ये रही कि खुद सिंह अपनी बर्नाबी सेंट्रल सीट पर जीत से जूझते दिखे। इसी वजह से एनडीपी के भीतर नेतृत्व को लेकर सवाल उठने लगे हैं। लेकिन बहुमत के नज़दीक आकर रुकने वाली लिबरल पार्टी के लिए, एनडीपी का समर्थन बेहद अहम हो गया है। संसद में अब एनडीपी की भूमिका ‘किंगमेकर’ जैसी है—जिसका वह पिछले चुनावों तक सपना देखती रही थी।
मार्क कार्नी ने पार्टी को नए सिरे से खड़ा करने की कोशिश की थी, क्योंकि जस्टिन ट्रूडो के दौर में कई विवादों और अंदरूनी झगड़ों के बाद लिबरल पार्टी की छवि प्रभावित हो चुकी थी। कार्नी ने मार्च 2023 में पार्टी की कमान संभाली और चुनावी लड़ाई को अमेरिका के साथ तनाव, घरेलू अर्थव्यवस्था की चुनौतियों और सामाजिक मुद्दों जैसे बड़े सवालों से जोड़ा।
चुनाव के नतीजों पर सिर्फ देशभर में नहीं, विदेशों में भी चर्चा है। कनाडा के पूर्व प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर और भारत के नेता राहुल गांधी तक ने कार्नी को जीत पर बधाई दी।
बार-बार जीतने के बावजूद इस बार लिबरल सरकार को बिना बहुमत के कानून बनवाने के लिए विपक्षी समर्थन की जरूरत पड़ेगी, खासकर अहम आर्थिक और विदेश नीति के फैसलों पर। मौजूदा हालात में, जब अमेरिका के साथ व्यापार के मुद्दों और डोनाल्ड ट्रंप की ओर से ‘एनेक्सेशन’ जैसी धमकियों का माहौल हो, किसी भी पार्टी के लिए पुराने ढर्रे पर चलना आसान नहीं होगा। लिबरल्स की अगली चुनौती होगी—देश को राजनीतिक स्थिरता दिलाना और जनता का भरोसा बनाए रखना।