वाइल्ड वाइल्ड पंजाब मूवी रिव्यु: 'फुकरे लाइट' की थकावट भरी कोशिश

वाइल्ड वाइल्ड पंजाब मूवी रिव्यु: 'फुकरे लाइट' की थकावट भरी कोशिश
  • Nikhil Sonar
  • 11 जुल॰ 2024
  • 20 टिप्पणि

वाइल्ड वाइल्ड पंजाब मूवी रिव्यु

वाइल्ड वाइल्ड पंजाब, जो सिमरप्रीत सिंह द्वारा निर्देशित और लव रंजन द्वारा निर्मित है, एक कॉमेडी फिल्म है जिसमें चार पंजाबी दोस्तों की कहानी दिखाई गयी है। यह दोस्त एक रोड ट्रिप पर जाते हैं ताकि अपने दोस्त की पूर्व गर्लफ्रेंड की शादी को रोक सकें। फिल्म में वरुण शर्मा (खंडे), सनी सिंह (अरोरे), जस्सी गिल (जैनू), और मंजोत सिंह (हनी पाजी) ने मुख भूमिकाएं निभाई हैं। हालांकि, फिल्म की कहानी और प्रस्तुति ने काफी आलोचना बटोरी है।

फिल्म की कहानी

फिल्म की कहानी तब शुरू होती है जब खंडे का दिल टूट जाता है और उसके दोस्त उसे शहर छोड़ने और कुछ नया करने के लिए प्रेरित करते हैं। यह चारों दोस्त मिलकर एक मिशन पर निकल पड़ते हैं जिससे कि वे खंडे की गर्लफ्रेंड की शादी तोड़ सकें। इस रोमांचक यात्रा में उन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

यह यात्रा किसी हास्यास्पद रामायण से कम नहीं है। हर मोड़ पर कुछ नया भटका देती घटनाएँ होती हैं, जिनमें से काफी सारी हास्यजनक बनायी गई हैं। वे एक पुलिस अधिकारी के पाले में फँसते हैं, ड्रग डीलर्स से टकराते हैं और अंततः शादी में भी दाखिल हो जाते हैं। इन्हीं घटनाओं की वजह से फिल्म थोड़ी उबाऊ लगने लगती है।

किरदारों की प्रस्तुति

फिल्म में किरदारों की प्रस्तुति जितनी जोरदार होनी चाहिए थी, उतनी नहीं है। फिल्म पंजाब की संस्कृति को सही तरिके से प्रस्तुत करने में भी नाकाम रही है। अधिकतर किरदार स्टीरियोटाइप से ग्रसित हैं और महिलाओं को मुख्यतः गौण भूमिका में ही दिखाया गया है।

खंडे के रूप में वरुण शर्मा ने अपने किरदार को निभाने की कोशिश की है लेकिन उनकी एक्टिंग कहीं-कहीं अतिरंजित लगती है। वहीं, सनी सिंह, जस्सी गिल, और मंजोत सिंह ने भी ठीक-ठाक प्रदर्शन किया है लेकिन उनकी भूमिकाएं भी स्टीरियोटाइप रहने के कारण प्रभावशाली नहीं बन पाई हैं।

कॉमेडी और हास्य की कमी

फिल्म का सबसे बड़ा नुकसान इसकी कॉमेडी ही है। कॉमेडी का प्रयास कहीं न कहीं बहुत ही सतही और भद्दा लगता है, और फिल्म के अधिकांश हास्य दृश्य बेमज़ा और मुफ्तहस्यानक बन जाते हैं।

फिल्म निर्माता दर्शकों पर एक मनोरंजनात्मक फिल्म का बोझ डालने की कोशिश की है, लेकिन इसमें वे सफल नहीं हो पाते। दर्शकों को निराश करने वाली बात यह है कि फिल्म के अधिकांश हास्य दृश्य या तो अनावश्यक हैं या उनकी टाइमिंग खराब है।

बेहतर प्रतिनिधित्व की ज़रुरत

वाइल्ड वाइल्ड पंजाब जैसी फिल्में शायद इसलिए बनती हैं क्योंकि निर्माता उम्मीद करते हैं कि पंजाबी संस्कृति और हास्य पर आधारित फिल्में ज्यादा सफल होंगी। लेकिन वास्तविकता यही है कि ऐसी फिल्में दर्शकों को वही घिसे-पिटे स्टीरियोटाइप्स के साथ परोसती रहती हैं। पंजाब को और भारतीय सिनेमा को बेहतर प्रतिनिधित्व की जरूरत है, जो कि इस फिल्म में गायब है।

निष्कर्ष

वाइल्ड वाइल्ड पंजाब एक ऐसी फिल्म है जो दर्शकों को रिझाने की बजाय थका देती है। इसके हास्य दृश्य कहीं न कहीं पीछे रह जाते हैं और फिल्म की कहानी में नवीनता की कमी खलती है। इसे 'फुकरे लाइट' कहना गलत नहीं है, क्योंकि इसमें कई जगहों पर 'फुकरे' जैसी फिलॉसफी का अनुसरण किया गया है। दर्शकों को हर बार हास्य फिल्मों में एक नया और ताजगी भरा अनुभव चाहिए होता है, जो कि इस फिल्म में अनुपस्थित है।

यदि आप एक हल्की-फुल्की कॉमेडी फिल्म देखने के मूड में हैं, तो यह फिल्म शायद आपकी उम्मीदों पर खरा ना उतरे। पंजाब की संस्कृति और लोगों को समझने के लिए इससे बेहतर विकल्प मौजूद हैं।

20 टिप्पणि

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    sharmila sharmila

    जुलाई 11, 2024 AT 00:14

    ऐसे लगता है कि फिल्म में पंजाबी संस्कृति का बुनियादी पहलू ठीक से नहीं दिखाया गया, जैसे लोकगीत और भोजनों की यादगार झलक नहीं मिली।

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    Shivansh Chawla

    जुलाई 17, 2024 AT 22:54

    भाई, इस फिल्म में दिखाए गए सारे स्टीरियोटाइप सिरफर्र कन्फिट्टी हैं, असली पंजाबी भावना को बकवास में ढंक दिया गया है।

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    Akhil Nagath

    जुलाई 24, 2024 AT 21:34

    मानव अस्तित्व की गहराई में प्रविष्ट होते हुए, यह फ़िल्म नीरस ह्यूमर को नैतिक दुविधा के रूप में प्रस्तुत करती प्रतीत होती है। :)

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    vipin dhiman

    जुलाई 31, 2024 AT 20:14

    ये फ़िल्म तो बस बकवास है, असली धीरज और असली लडाई को तोड़-फोड़ कर दिखाया गया है।

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    vijay jangra

    अगस्त 7, 2024 AT 18:54

    फ़िल्म की कहानी में संभावित गहराई थी, पर निर्देशन के कारण वह खो गई। अगर स्क्रीनराइटिंग में थोड़ा सुधार किया जाता तो दर्शकों को अधिक जुड़ाव मिलता।

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    Vidit Gupta

    अगस्त 14, 2024 AT 17:34

    बहुतेर, कहानी में कई मोड़ थे, पर टाइमिंग ठीक नहीं थी, कॉमेडी का पंचलाइन अक्सर चुप रह जाता था, जिससे दर्शकों को ठंडा लग रहा था।

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    Gurkirat Gill

    अगस्त 21, 2024 AT 16:14

    देखो, फिल्म में चार दोस्त का सफ़र तो मज़ेदार लग सकता है, पर जब तक किरदार स्टीरियोटाइप से बाहर नहीं निकलते, मज़ा अधूरा रहता है।

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    Sandeep Chavan

    अगस्त 28, 2024 AT 14:54

    चलो भाई, हमें ऐसी कॉमेडी चाहिए जो दिल को छू ले, न कि सिर्फ़ गली-गली में घूमती गाली‑गलौज! इस फ़िल्म ने यह मानक नहीं पला।

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    anushka agrahari

    सितंबर 4, 2024 AT 13:34

    फिल्म का शीर्षक दर्शाता है कि यह एक हल्की‑फुल्की यात्रा होगी।
    किन्तु शुरुआत से ही कथा में गहराई की कमी स्पष्ट हो गई।
    मुख्य पात्रों के बीच के संवाद अक्सर सतही और टेम्पलेट जैसे लगे।
    दर्शक आशा करता है कि कॉमेडी के साथ सामाजिक संदेश भी आएगा।
    दुर्भाग्यवश, फिल्म ने इस अवसर को हाथ से निकल दिया।
    कई दृश्य अनावश्यक रूप से लंबे बने और लय बिगड़ गई।
    फिर भी, कुछ क्षणों में स्थानीय संस्कृति की झलक मिलती है।
    पर वह भी अत्यधिक कूटनीतिक ढंग से प्रस्तुत की गई।
    यह दर्शाता है कि निर्माताओं ने गहराई से अनुसंधान नहीं किया।
    फ़िल्म में महिलाओं की प्रस्तुति बहुत ही गौण रही।
    यह एक बड़ी खामी है, क्योंकि विविधता के बिना कोई भी कहानी पूर्ण नहीं हो सकती।
    अगर निर्देशक ने अधिक समावेशी दृष्टिकोण अपनाया होता, तो परिणाम अधिक संतोषजनक हो सकता था।
    साथ ही, कॉमेडी के टाइमिंग को बेहतर बनाकर दर्शकों को हँसी का सच्चा अनुभव दिलाया जा सकता था।
    कुल मिलाकर, यह फ़िल्म कड़ी मेहनत के बावजूद अपनी संभावनाओं को पूरा नहीं कर पाई।
    आशा है कि भविष्य में ऐसी कहानीकार अधिक विचारशील और नवीनीकरणपूर्ण कार्य प्रस्तुत करेंगे।

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    aparna apu

    सितंबर 11, 2024 AT 12:14

    वाइल्ड वाइल्ड पंजाब का ट्रेलर देख के तो मैं उत्साहित हो गया, लेकिन वास्तविकता में यह फिल्म बहुत ही सामान्य लगती है। हर मोड़ पर वही पुरानी चीजें दोहराई जाती हैं, जैसे पीला पॉपकॉर्न के साथ खस्ता क़िस्मत। यहाँ तक कि कुछ सीन इतने बेकार हैं कि हँसी नहीं आती, बस आँखें घुमा लेती हैं। निर्देशक शायद यह सोच रहा था कि हर पंच लाईन को ज़ोर से कहें तो गूँज उठेगी, पर वह गूँज बस एक फुंकार बनकर रह गई। जब तक ये चार दोस्त की दोस्ती की सच्ची भावना नहीं दिखती, तब तक दर्शकों को जुड़ाव नहीं मिलता। फिल्म में प्रयुक्त स्टीरियोटाइप्स ने मुझे निराश कर दिया, जैसे बांसुरी वाले हँसी के लिए ही नहीं बल्कि केवल एक टारगेट बन गए।
    😀

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    arun kumar

    सितंबर 18, 2024 AT 10:54

    इस फिल्म में प्रयुक्त कॉमेडी के कई हिस्से सच में बेमानी लगते हैं, लेकिन फिर भी कुछ दृश्य दिल को छू जाता है, जैसे दोस्तों के बीच का भरोसा।

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    Karan Kamal

    सितंबर 25, 2024 AT 09:34

    फ़िल्म की कथा में थोड़ा और जटिलता जोड़ने से शायद बेहतर हो सकता था, उदाहरण के तौर पर पीछे की कहानी को थोड़ा खोल दिया जाता तो मज़ा आता।

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    Navina Anand

    अक्तूबर 2, 2024 AT 08:14

    समग्र रूप से, फिल्म की कोशिश सराहनीय है, पर निष्पादन में कमी दिखती है।

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    Prashant Ghotikar

    अक्तूबर 9, 2024 AT 06:54

    अगर निर्देशक ने ठोस संदेश के साथ हल्की‑फुल्की कॉमेडी को संतुलित किया होता, तो यह फ़िल्म अधिक दिलचस्प बन सकती थी।

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    Sameer Srivastava

    अक्तूबर 16, 2024 AT 05:34

    देखिए, इस फ़िल्म की व्यर्थता को समझाया जा सकता है, क्योंकि यह सामाजिक मूल्य को घुटने के बल धकेल रही है; बिल्कुल ही निरपराध नहीं!
    🤬

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    Mohammed Azharuddin Sayed

    अक्तूबर 23, 2024 AT 04:14

    सामाजिक ज़िम्मेदारी की बात तो सही है, लेकिन इस फ़िल्म ने ज्यादा गंभीरता के साथ नहीं खेला, इसलिए संदेश खो गया।

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    Avadh Kakkad

    अक्तूबर 30, 2024 AT 02:54

    वास्तव में, इस फ़िल्म की लूपिंग म्यूजिक ने कहानी को थोड़ा पैटर्न बना दिया था, इसे सुधारा जा सकता था।

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    Sameer Kumar

    नवंबर 6, 2024 AT 01:34

    पंजाबी संस्कृति के कई पहलू इस फ़िल्म में दिखाए गये हैं पर उनका उपयोग थोड़ा हल्के‑फुल्के अंदाज़ में किया गया है।

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    naman sharma

    नवंबर 13, 2024 AT 00:14

    यदि हम इस फ़िल्म को एक व्यापक सांस्कृतिक रणनीति के हिस्से के रूप में देखें, तो इसमें छिपे अर्थों को समझना अतीव आवश्यक हो जाता है।

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    Sweta Agarwal

    नवंबर 19, 2024 AT 22:54

    वाह, क्या “फुकरे लाइट” का नया अर्थ मिला।

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