जब लवीनाशर्मा, पत्रकार Times Now Hindi ने 24 अक्टूबर 2024 को प्रकाशित रिपोर्ट में बताया कि इस साल अहोई अष्टमी अहोई अष्टमी 2024भारत गुरुवार को मनाई जाएगी, तो यह खबर न सिर्फ धार्मिक माहौल को जमाएगी बल्कि लाखों माताओं के जीवन में बदलाव का संकेत भी देगी। कई प्रमुख समाचार पोर्टल – Jagran, Navbharat Times और Prabhat Khabar – ने उसी दिन की तिथियों और विधियों को पुष्टि की है। यही कारण है कि यह अवकाश सिर्फ एक पंचांगीय तिथि नहीं, बल्कि हर भारतीय परिवार की भावनात्मक जुड़ाव की रीढ़ बनना चाहता है।
अहोई अष्टमी 2024 का सांस्कृतिक महत्व
अहोई अष्टमी, जिसे अक्सर "संतान रक्षा का पर्व" कहा जाता है, कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष में आती है। इस दिन विवाहित महिलाएं अहोई माता की आराधना करती हैं और अपने बच्चों के दीर्घायु और सुरक्षा के लिए निरजला व्रत रखती हैं। Jagran के धर्म डेस्क के अनुसार, व्रत की समाप्ति सूर्यास्त के बाद, तारों को अर्घ्य अर्पित करके होती है। यह अर्घ्य अर्पण सिर्फ आध्यात्मिक निहितार्थ नहीं रखता, बल्कि पारिवारिक एकता के प्रतीक के रूप में भी माना जाता है।
गणेशजी की खीर वाली कथा – क्यों है अनिवार्य?
सबसे रोचक हिस्सा वह कथा है जो गणेश जी से जुड़ी है, जिसे "गणेशजी की खीर वाली कहानी" कहा जाता है। इस कथा के अनुसार, एक दिन गणेश जी चुटकी में चावल और एक चम्मच दूध लेकर घूम रहे थे और किसी को अपनी खीर बनाने को कहा। सभी ने मना कर दिया, तभी एक वृद्धा ने मदद करने का प्रस्ताव रखा। वृद्धा ने टोप लेकर आया, जिसमें गणेश जी ने दूध डालते ही टोप पूरी तरह से भर गया। अंत में, वृद्धा की बहू ने खीर का एक छींटा जमीन पर गिरा, जिससे गणेश जी का भोग लग गया। यह छोटा‑छोटा विवरण Navbharat Times ने 23 अक्टूबर 2024 को Ayushi Tyagi की रिपोर्ट में उजागर किया।
कुरानियों के अनुसार, इस कथा का पाठ बिना व्रत अधूरा माना जाता है। जैसा कि Times Now Hindi ने कहा, "इसे पढ़ने से हर मनोकामना पूरी होगी"। इस कारण से आजकल कई परिवार अपने अहोई अष्टमी के समारोह में इस कथा को भी शामिल कर रहे हैं।
व्रत विधि एवं पूजा की विस्तृत प्रक्रिया
व्रत शुरू होते ही महिलाएं सुबह के पहले भाग में जल नहीं पीतीं। प्रातःकाल में Prabhat Khabar ने बताया कि घर में स्वच्छता और शुद्ध भोजन की व्यवस्था अनिवार्य है। दोपहर के बाद, प्रादोष काल (सूर्यास्त के बाद लेकिन सितारों के निकलने से पहले) में अहोई माता की पूजा की जाती है। इस समय:
- सूर्यास्त के तुरंत बाद अहोई माता की कथा का पाठ किया जाता है।
- फिर गणेश जी की खीर वाली कथा को दोहराया जाता है।
- तारों को अर्घ्य अर्पित करने के लिए एक छोटा जल पात्र तैयार किया जाता है, जिसमें शुद्ध जल एवं फूल रखे जाते हैं।
- व्रत के अंत में महिलाएं धीरे‑धीरे पानी पीती हैं और हल्का प्रसाद सेवन करती हैं।
इस पूजा की प्रमुख विशेषता यह है कि सभी विधि‑विवरण नयी दिल्ली के धर्म परिषद द्वारा मान्य हैं, जिससे पूरे देश में एकरूपता बनी रहती है।

धार्मिक विद्वानों और समाज की प्रतिक्रिया
जैसे ही समारोह नजदीक आया, कई धार्मिक ग्रंथों और विद्वानों के बयान सामने आए। Jagran के एक प्रमुख पंडित ने कहा, "जिनके पास संतान नहीं है, उन्हें यह व्रत अनिवार्य रूप से रखना चाहिए, क्योंकि इससे उन्हें उत्तम संतान की प्राप्ति होती है"। वहीं, Prabhu Dwar की यूट्यूब वीडियो में कहा गया कि इस व्रत को धारण करने से बच्चों की शारीरिक और बौद्धिक विकास में भी सकारात्मक असर दिखता है।
समुदाय के स्तर पर भी इस पहल को सराहना मिली। कई मांएँ बताती हैं कि इस व्रत के बाद उन्हें अपने बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार महसूस हुआ, और कई बार तो नौकरी में प्रोमोशन या शिक्षा में बेहतर परिणाम भी देखे हैं।
आगे क्या उम्मीदें? भविष्य की संभावनाएँ
डिजिटल युग में, इस तरह के धार्मिक अनुष्ठान ऑनलाइन स्ट्रीमिंग और सोशल मीडिया के माध्यम से भी प्रसारित हो रहे हैं। इस साल, Times Now Hindi और Navbharat Times ने लाइव पूजा प्रसारण की घोषणा की है, जिससे ग्रामीण एवं दूरस्थ क्षेत्रों की महिलाएँ भी इस पवित्र क्षण से जुड़ सकेंगी। विशेषज्ञ अनुमान लगाते हैं कि अगली कुछ वर्षों में इस व्रत का डिजिटल रूप से विस्तार होने से सामाजिक बंधन और भी मजबूत होगा।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
अहोई अष्टमी के व्रत में कौन‑कौन से चरण आवश्यक हैं?
व्रत का आरम्भ सुबह बिना पानी के रखा जाता है, दोपहर में शुद्ध भोजन से बचते हैं, और प्रादोष काल में अहोई माता एवं गणेश जी की कथा सुनते हुए अर्घ्य अर्पित करते हैं। सूर्यास्त के बाद जल से व्रत तोड़ते हैं।
गणेशजी की खीर वाली कथा क्यों पढ़नी चाहिए?
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार यह कथा व्रत को पूर्ण बनाती है। कथा में दर्शाए गए चमत्कार के कारण माँ‑बच्चे को दीर्घायु और स्वास्थ्य की प्राप्ति का विश्वास बनाया गया है।
क्या यह व्रत बच्चों के लिए किसी तरह के लाभ देता है?
धर्मग्रन्थों में कहा गया है कि निरजला व्रत रखने की माँ को उत्तम संतान का वरदान मिलता है। कई माताएँ यह भी बताती हैं कि व्रत के बाद उनके बच्चों की पढ़ाई‑लाइक में सुधार देखा गया।
अहोई अष्टमी कब और किस स्थान पर मनाया जाता है?
2024 में अहोई अष्टमी 24 अक्टूबर (गुरुवार) को, कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष में, पूरे भारत में मनाई जाएगी। प्रमुख रूप से उत्तर भारत के ग्रामीण क्षेत्र में इसका अधिक उत्सव होता है।
क्या व्रत के दौरान कोई विशेष रिवाज़ या वसं दोबारा करना चाहिए?
रिवाज़ में सुबह के समय स्नान, शुद्ध कपड़े पहनना, और अंतरंग स्थान पर परिवार संग पंचांग पढ़ना शामिल है। शाम को अर्घ्य अर्पित करने से व्रत का फल पूर्ण माना जाता है।
Swapnil Kapoor
अक्तूबर 11, 2025 AT 04:10अहोई अष्टमी के व्रत में पानी न पीना और शुद्ध भोजन से परहेज करना मुख्य है, लेकिन यह भी ज़रूरी है कि घर के सभी सदस्य शांति और शुद्ध विचारों को बनाए रखें। व्रत के दौरान मन में किसी भी नकारात्मक भावना को दमन करने की कोशिश करें। इसके साथ ही शाम के अर्घ्य में प्रयोग होने वाले जल पात्र को साफ़ और नई कपड़े से ढँका रखें। इस तरह से व्रत का फल पूर्ण होता है और मां‑बच्चे दोनों को स्वास्थ्य लाभ मिलता है।
Shweta Tiwari
अक्तूबर 11, 2025 AT 19:26संबंधित धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, गणेश जी की खीर वाली कथा को पढ़ना व्रत की पूर्णता के लिये अनिवार्य माना गया है। यह कथा न केवल आध्यात्मिक ऊर्जा को बढ़ावा देती है, बल्कि परिवार में एकता का प्रतीक भी बनती है। इस वर्ष के पहलू को ध्यान में रखते हुए, सभी माताओं से अनुरोध है कि वे कथा को सही क्रम में सुनें और समझें।
Rahul Sarker
अक्तूबर 12, 2025 AT 09:20आजकल की ये झंझट भरी प्रचलनें सिर्फ़ एक व्यावसायिक चाल हैं, जहाँ मीडिया बाहर से लुभा कर लोगों को नकली विश्वास दिला रहा है। असली वैदिक ज्ञान तो सरल और स्वाभाविक है, लेकिन इनपर अति-ध्यान देना समय की बर्बादी है। हमें वास्तविक धर्म की ओर वापस लौटना चाहिए, न कि इस तरह के ढोंगे रिवाज़ों में फँसना चाहिए।