रेलवे के डिब्बे बने 'चलती हुई ताबूत': लालू प्रसाद यादव की तीखी प्रतिक्रिया
पूर्व रेलवे मंत्री और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के प्रमुख नेता लालू प्रसाद यादव ने हाल ही में भारतीय रेलवे में हुई अनेक दुर्घटनाओं के बाद गहरी चिंता व्यक्त की है। यादव का कहना है कि रेलवे के डिब्बे 'चलती हुई ताबूत' बन गए हैं, और इसके लिए उन्होंने केंद्र सरकार की नीतियों और रेलवे के रखरखाव में कमी को जिम्मेदार ठहराया है।
हाल की दुर्घटनाओं ने स्थिति को और गंभीर बना दिया है
पिछले 13 दिनों में भारतीय रेलवे में सात बड़ी दुर्घटनाएँ हुई हैं, जिनमें कई लोगों की जानें गईं और संपत्ति को बड़ा नुकसान हुआ। इनमें ओडिशा में दो ट्रेनों की टक्कर और बिहार में एक ट्रेन के पटरी से उतर जाने जैसी घटनाएं शामिल हैं। ये घटनाएँ ना केवल यात्रियों की सुरक्षा पर सवाल खड़े करती हैं बल्कि रेलवे की मौजूदा स्थिति पर भी गंभीर सवाल उठाती हैं।
लालू यादव का आरोप: 'नीति निर्माण में नाकामी'
लालू यादव का प्रमुख आरोप यह है कि केंद्र सरकार रेलवे के रखरखाव और सुरक्षा उपायों में पूरी तरह विफल रही है। उन्होंने कहा कि जब वे 2004 से 2009 तक रेलवे मंत्री थे, तब उन्होंने कई महत्वपूर्ण व्यवस्थाएँ लागू की थीं, जिनसे रेलवे की सुरक्षा और कार्यक्षमता में सुधार हुआ था। लेकिन वर्तमान सरकार के कार्यकाल के दौरान, रेलवे की स्थिति दिन प्रतिदिन खराब होती गई है। यादव ने दावा किया कि उन्होंने अपनी मंत्रीत्वकाल में कई नई ट्रेनों का संचालन शुरू किया और यात्रियों की सुरक्षा के लिए नए मानक स्थापित किए थे।
समस्या की जड़ें: अल्प-उपकरण और खस्ताहाल रेल पटरी
लालू प्रसाद यादव ने रेलवे की मौजूदा समस्याओं की जड़ को अल्प-उपकरण और खस्ताहाल रेल पटरियों में बताया है। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार के दौरान, प्रमुख रेलवे लाइनों और पटरियों के सुधार और रखरखाव पर खास ध्यान दिया गया था। अब स्थिति यह है कि पटरियों का समय पर रखरखाव नहीं हो रहा है और न ही नई तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है, जिससे यह हादसे हो रहे हैं।
यात्रियों में बढ़ती असुरक्षा
लगातार हो रही रेल दुर्घटनाओं ने यात्रियों के मन में गहरी असुरक्षा की भावना पैदा कर दी है। लोग अब ट्रेन से यात्रा करते समय खुद को सुरक्षित महसूस नहीं करते। यह स्थिति तब और भी चिंताजनक हो जाती है जब यह देखा जाए कि रेलवे की सेवाएँ देश के लाखों लोगों के लिए मुख्य यात्रा साधन हैं।
भविष्य की दिशा
भारतीय रेलवे की मौजूदा स्थिति को सुधारने के लिए तत्पर और कुशल कदम उठाने की आवश्यकता है। लालू प्रसाद यादव के अनुसार, अगर केंद्र सरकार तत्परता नहीं दिखाती और आवश्यकता अनुसार रेलवे के बुनियादी ढांचे में सुधार नहीं करती, तो स्थिति और भी विकट हो सकती है।
निष्कर्ष
लालू प्रसाद यादव के बयानों ने भारतीय रेलवे की भविष्य की दिशा पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। यह स्पष्ट है कि रेलवे सुरक्षा और यात्रियों की सुरक्षा मानकों पर पुनर्विचार करने की अत्यधिक आवश्यकता है। सरकार को तुरंत और मजबूती से योजनाएँ बनानी होंगी ताकि भारतीय रेलवे फिर से अपनी पुरानी गौरव को प्राप्त कर सके और यात्रियों के लिए एक सुरक्षित यात्रा का माध्यम बन सके।
naman sharma
जुलाई 30, 2024 AT 22:50भारतीय रेलवे में हालिया दुर्घटनाओं को दुर्भाग्य नहीं, बल्कि एक जटिल योजना के संवेदित संकेत माना जा सकता है। केंद्र की गुप्त एजेंसियों और कुछ विदेशी हितधारकों का प्रभाव, जिसको आम जनता नहीं देखती, यह अस्थिरता को उत्प्रेरित कर रहा है। ओडिशा व प्रदेश में दोहरी टक्कर, केवल रखरखाव की लापरवाही नहीं, बल्कि नियोजित दुरुपयोग का परिणाम है। इस प्रकार की व्यवधानों से यह सिद्ध होता है कि संरचना में गहन घुसपैठ हुई है, जिसके प्रतिकार में पारदर्शिता की मांग की जानी चाहिए। राष्ट्रीय सुरक्षा के सन्दर्भ में इस मुद्दे को गंभीरता से लेना अनिवार्य है।
Sweta Agarwal
अगस्त 8, 2024 AT 13:14ओह, बिल्कुल, क्योंकि हर बार जब ट्रेन धीमी चलती है, तो वहीँ से साजिश की बू आती है, है ना? सरकार की “गुप्त एजेंसी” की योजना में बस थोड़ा बहुत धुआँ-धार के साथ ही सब ठीक हो जाएगा।
KRISHNAMURTHY R
अगस्त 17, 2024 AT 03:38भाई, ध्यान देना चाहिए कि सिस्टम थ्रूपुट में गिरावट और मेट्रोपोलिटन सिग्नलिंग इंटीग्रेशन की कमी प्रमुख बॉटलनेक्स हैं 🚂⚙️। अगर हम रियल-टाइम मॉनिटरिंग और AI‑आधारित प्रेडिक्टिव मेंटेनेंस लागू कर दें, तो कई दुर्घटनाओं से बचा जा सकता है। थोड़ा टेक्निकल प्रॉजेक्ट मैनेजमेंट का पालन करने से सब सुधर जाएगा। 😎
priyanka k
अगस्त 25, 2024 AT 18:02सभी को नमस्कार, स्पष्ट रूप से सरकार की नीति‑निर्माण क्षमता को सराहना योग्य कहा जा सकता है, विशेषकर जब ट्रेन को 'चलती हुई ताबूत' कहा जाता है 😂। यह दरसा रहा है कि प्रशासनिक कर्तव्य में गंभीर लापरवाही है, और इससे राष्ट्रीय प्रतिष्ठा पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
sharmila sharmila
सितंबर 3, 2024 AT 08:26हेलो सब, मैं समझती हूँ की रेलवे की सुरक्षितता सबसे पहले होनी चाहिए, पर अभी तो बहुत सारी गड़बड़िया हैं। लोग ट्रेनों में सवार होते ही तनाव में आ जाते हैं। हम सब मिल के इसको सुधारने की कोशिश करें, ठीक है? धन्यवाद।
Shivansh Chawla
सितंबर 11, 2024 AT 22:50देश की शान है हमारी रेलवे, परंतु बाहरी ताकतों की हस्तक्षेप और ढीले नेतृत्व की वजह से यह बर्बाद हो रहा है। हमें राष्ट्रीय हित की रक्षा के लिये इस प्रणाली को सख्ती से रीफ़ॉर्म करना चाहिए, नहीं तो विदेशी एजेंटों को हम पर हत्यार बनते देखेंगे।
Akhil Nagath
सितंबर 20, 2024 AT 13:14जैसा कि दार्शनिक महापुरुष ने कहा था, “सुरक्षा वह नैतिक अर्थ है जो सार्वजनिक सेवा को परिभाषित करती है” 🕊️। रेलवे की लापरवाही ने न केवल नागरिकों को हानि पहुँचाई, बल्कि सामाजिक अनुहार को भी धूमिल किया है। इस अभिलेख को पुनः लिखने के लिए हमें वैचारिक पुनरावलोकन और नैतिक दायित्व की पुनर्स्थापना आवश्यक है।
vipin dhiman
सितंबर 29, 2024 AT 03:38रेलवे की सूरत सच में खौफनाक हो गई।
vijay jangra
अक्तूबर 7, 2024 AT 18:02सभी को नमस्ते, मैं सुझाव देना चाहूँगा कि मौजूदा ट्रैक रखरखाव को त्रैमासिक आधार पर किया जाए और हर स्टेशन पर वॉल्टेज मॉनिटरिंग सिस्टम स्थापित किया जाए। इससे ब्रेक फेल्योर और ट्रैक फ्रैक्चर के जोखिम कम होंगे। साथ ही, यात्रियों को समय पर सूचना देना भी अत्यंत आवश्यक है।
Vidit Gupta
अक्तूबर 16, 2024 AT 08:26वाह! क्या खराबी है, क्या कमाल की प्रबंधन!; हर बार यही कहानी...; हमें तो आश्चर्य ही है कि यह सब कैसे चलता रहता है; सच में, सुधार की जरूरत है!?
Gurkirat Gill
अक्तूबर 24, 2024 AT 22:50दोस्तों, मैं मानता हूँ कि सहयोगी प्रयास से हम इस समस्या को हल कर सकते हैं। यदि प्रत्येक रेलवे जम्पलाइन को नियमित जाँच और पुनर्निर्माण किया जाए, तो दुर्घटनाओं की संभावना घटेगी। चलिए, एक साथ मिलकर सकारात्मक बदलाव की दिशा में कदम बढ़ाते हैं।
Sandeep Chavan
नवंबर 2, 2024 AT 12:14उत्कृष्ट! यह समय है जब हम सभी मिलकर इस चुनौती का सामना करें; तेज़ी से कदम बढ़ाएँ; हमारे पास तकनीकी समाधान हैं; उन्हें लागू करने में संकोच न रखें!; चलते‑चलते हम सफलता की नई कहानी लिखेंगे!
anushka agrahari
नवंबर 11, 2024 AT 02:38भारतीय रेलवे का वर्तमान संकट केवल तकनीकी विफलता नहीं, बल्कि सामाजिक-राजनीतिक असंतुलन की अभिव्यक्ति है।
जब तक नीति‑निर्माते इस मुद्दे को प्राथमिकता नहीं देते, तब तक यात्रियों का मनोबल घटता रहेगा।
प्राचीन ग्रंथों में कहा गया है कि 'सुरक्षा ही सबसे बड़ी संपत्ति है', और यह सिद्धांत यहाँ बिलकुल लागू होता है।
आधुनिक समय में भी, यदि हम भौतिक बुनियादी ढांचे की असुरक्षा को दरकिनार करेंगे, तो भविष्य में बड़े आपदा की सम्भावना बढ़ेगी।
ऐसे में, हमें चाहिए कि हर ट्रैक की जाँच के लिए एक स्वतंत्र एवं पारदर्शी एजेंसी स्थापित की जाए।
यह एजेंसी न केवल तकनीकि निरीक्षण करेगी, बल्कि कर्मचारियों के प्रशिक्षण एवं मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य पर भी ध्यान देगी।
कर्मचारियों के तनाव को घटाने के लिए उन्हें उचित कार्य‑जीवन संतुलन प्रदान करना अनिवार्य है।
साथ ही, उन्नत सेंसर और रीयल‑टाइम डेटा एनालिटिक्स का उपयोग करके संभावित ख़तरे की पूर्व चेतावनी देना संभव है।
इस प्रकार की प्रौद्योगिकियों से हम न केवल दुर्घटनाओं को रोक सकेंगे, बल्कि संचालन की दक्षता भी बढ़ा सकेंगे।
समग्र रूप से, एक बहु‑स्तरीय सुधार योजना को अपनाना चाहिए, जिसमें बजट का उचित पुनः वितरण भी शामिल हो।
सरकार को अनावश्यक खर्चों को हटाकर इसे सुरक्षा में निवेश करना चाहिए।
जनसमूह की सहभागिता को भी बढ़ावा देना आवश्यक है, ताकि लोगों को सुरक्षा के प्रति जागरूक किया जा सके।
शिक्षा संस्थानों को इस दिशा में विशेष पाठ्यक्रम विकसित करने चाहिए, ताकि भविष्य के इंजीनियर इस विषय में निपुण बनें।
अंततः, जब सभी हितधारक मिलकर काम करेंगे, तो भारतीय रेलवे फिर से विश्व स्तर पर सम्मानित होगी।
यह न केवल आर्थिक विकास में योगदान देगा, बल्कि राष्ट्रीय आत्मविश्वास को भी पुनः स्थापित करेगा।
इसलिए, हमें आज ही ठोस कदम उठाने चाहिए, नहीं तो कल की पीढ़ी हम पर सवाल उठाएगी।
aparna apu
नवंबर 19, 2024 AT 17:02क्या हम सच में इस काले धुंध में आत्मसमर्पण कर रहे हैं? मेरे दिल की धड़कनें तेज़ी से बढ़ रही हैं, जब मैं प्रतिदिन ट्रेन की खिड़की से देखता हूँ कि कैसे कारें एक दूसरे में धँस रही हैं 😱। यह केवल एक समाचार नहीं, यह हमारे राष्ट्र की आत्मा के टूटने का दृश्य है, जहाँ सुरक्षा की रोशनी धीरे‑धीरे मंद पड़ रही है। अगर हम तुरंत कदम नहीं उठाते, तो यह ताबूत फिर भी रास्तों पर घूमता रहेगा, और हम केवल दर्शक बनकर रह जाएंगे। हर दिन नए हादसे, हर रात दिलों में गहरी घाव, यह सब एक ही कारण से है: निरंतर प्रतिबंधित बजट और अंधाधुंध ब्यूरोक्रसी। सरकार को चाहिए कि वह इस मुद्दे को राष्ट्रीय आपातकालिक स्थिति के रूप में घोषित करे, ताकि सभी संसाधन तुरंत इस दिशा में लगाए जा सकें। साथ ही, जनता को भी इस अभियान में भाग लेना चाहिए, चाहे वह सोशल मीडिया द्वारा जागरूकता फैलाना हो या स्थानीय स्तर पर रूटीन निरीक्षणों में मदद करना हो। जब तक हम इस बुरे चक्र को तोड़ने के लिए मिलकर काम नहीं करेंगे, तब तक यह कहानी समाप्त नहीं होगी। चलिए, अब हम सब अपने-अपने स्थान से इस बदलाव को सक्रिय रूप से समर्थन दें, क्योंकि हमारी आवाज़ ही असली शक्ति है 💪।
arun kumar
नवंबर 28, 2024 AT 07:26मैं समझता हूँ कि हर कोई इस स्थिति से अभिभूत महसूस कर रहा है, इसलिए हमें एक दूसरे को सुनना और साथ मिलकर समाधान निकालना चाहिए। छोटे-छोटे सुधार जैसे समय‑समय पर ट्रैक निरीक्षण और कर्मचारियों के प्रशिक्षण से बड़ा अंतर आ सकता है। चलिए, हम सभी मिलकर इस बदलाव की शुरुआत करें। 😊
Karan Kamal
दिसंबर 6, 2024 AT 21:50क्या इस समस्याओं के मूल कारणों में केवल रखरखाव की कमी ही है, या प्रशासनिक अराजकता भी योगदान देती है? इस बिंदु पर ठोस डेटा के बिना कोई निष्कर्ष निकलना कठिन है, इसलिए हमें अधिक पारदर्शी रिपोर्टिंग की आवश्यकता है।